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Kavita Kosh से
वर्षा की प्रतीक्षा में
पैड़-पौधे भी।
पीने लगा है
धरती का भी पानी
प्यासा सूरज।
निकली नहीं
कन्जूस बादलों से
एक भी बूँद ।
तरस गये
सावन-भादौ ।
कहो तो सही मन प्राणो से तुम वक्त सुनेगा,।
प्रीत हाँ प्रीत दुनिया में सुख की एक ही रीत,
आप से मिले तो लगा क्या मिलना किसी और से