भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''बारूद और बच्चे'''
 
ममता से वंचित-शापित
माँओं के ख्यालों में
भविष्य के अंध कूप में
बारूदी ज़खीरा इकट्ठा कर रहे हैं ।
 
(वर्तमान साहित्य, सं. कुंवर पाल सिंह, अक्टूबर, 2009)
 
 
</poem>