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लोग / विजय वाते

34 bytes added, 06:43, 11 जून 2010
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= गज़ल ग़ज़ल / विजय वाते
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
भीगे रुमाल हिलाते लोग,
सूखे मन ले जाते लोग|
होंठों पर षड्यंत्री चुप्पी,
मन की गाँठ दिखाते लोग|
चंदा जाए झूलाघर तो,
घर झूला ला पाते लोग|
आपनी अपनी पीर लिए सब,
रोते लोग रुलाते लोग|
शुद्ध गणित की भाषा मे अब,
गीत गज़ल भी गाते लोग |</poem>