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नया पृष्ठ: <poem>जितना रचना है उतना मिटना भी है शायद यह अलग बात है रचता हुआ मिटत…
<poem>जितना रचना है
उतना मिटना भी है शायद
यह अलग बात है
रचता हुआ मिटता
है नहीं जो दिखता
दिखता जैसे अंखुआ
बनता लकदक पेड
लेकिन बीज फिर नहीं रह जाता
कुछ मिटाना ही
कुछ रचना है !
</poem>
उतना मिटना भी है शायद
यह अलग बात है
रचता हुआ मिटता
है नहीं जो दिखता
दिखता जैसे अंखुआ
बनता लकदक पेड
लेकिन बीज फिर नहीं रह जाता
कुछ मिटाना ही
कुछ रचना है !
</poem>