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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार रवींद्र
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[[Category:गीत]]{{KKCatNavgeet}}<poem>नये वक्त वक़्त की महाकथा यह <br>सुनो, साधुओ ! <br>नये वक्त वक़्त की महाकथा यह <br>अद्भुत-न्यारी <br> एक पुराना सिंहासन है <br>रखा बीच-चौराहे उलटा <br>जिस-किस की हो जाती जब-तब <br>राज्यलक्ष्मी अबकी कुलटा <br> लिल्ली घोडी एक <br>उसी पर चढते हैं सब <br>बारी-बारी <br> टूटे दरवाजे के पीछे <br>सहमा खडा एक बच्चा है <br>पक्की हैं मीनारें सारी <br>आँगन हर घर का कच्चा है <br> शहर कोई हो <br>रोज सुबह फरमान शाह का <br>होता जारी <br> बमभोले की नगरी में भी <br>ठग रहते हैं दुनिया-भर के <br>अप्सराओं की टोली आई <br>दिये बुझे सब पूजाघर के <br> सागर ने <br>लाँघी मर्यादा <br>
गंगाजल भी अब है खारी।
</poem>
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