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|रचनाकार=संजय चतुर्वेदी
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<Poem>

हवा एक धातु है
हमारे फेफड़ों में
खून में
हमारी आत्‍मा में

खनखनाहट
जमीन पर गिरी थाली की तरह
हमारे पेट में

हमारे सूखते हुए कपड़ों के नीचे
कसे हुए तारों की तरह
हमारे सपनों में
हमारे बच्‍चों की आंखों में

कमरे की हवा समेटकर
बनाएं एक हथौड़ा
और एक धारदार हथियार
दिमाग के सांचे में.
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