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Kavita Kosh से
पीछे ठग थे आगे यार
बोरी भ्रर भर मेहनत पीसूँ
निकले इक मुट्ठी भर सार
जीवन है इक ऐसी डोर
गाठें जिसमें कई हजारहज़ार
सारे तुगलक तुग़लक चुन-चुन कर
हमने बना ली है सरकार