भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद |संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
भोर का
बावला पाखी मैं
भटकता हुआ दिन
मेरे साथ
गुम्बदों के अंक में
सिमट जाएगा
और पश्चिम दिशा
का संसार रात होने तक
उन कंगूरों पर छा जाएगा
-सहसा गंध-सा
डूबती सांझ के
उस उजले आलोक में
स्मृति के कैनवास पर
देर तक काँपेगी एक छायामय आकृति
फिर;चाहे वह
झरती हुई पत्ती
हो,या ...तुम!
सूरज फिर उगेगा
पूरब की ओर से!!
<poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=गोबिन्द प्रसाद
|संग्रह=कोई ऐसा शब्द दो / गोबिन्द प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
भोर का
बावला पाखी मैं
भटकता हुआ दिन
मेरे साथ
गुम्बदों के अंक में
सिमट जाएगा
और पश्चिम दिशा
का संसार रात होने तक
उन कंगूरों पर छा जाएगा
-सहसा गंध-सा
डूबती सांझ के
उस उजले आलोक में
स्मृति के कैनवास पर
देर तक काँपेगी एक छायामय आकृति
फिर;चाहे वह
झरती हुई पत्ती
हो,या ...तुम!
सूरज फिर उगेगा
पूरब की ओर से!!
<poem>