भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
इसी वक्त तो परास्त करती हैं मुझे
मेरी कमजोरियां ।
कांपता हूं मैं, यश की विभूति से विभूषित,
पुष्पमाल के रूप में
सर्पमाल को लटकाए ।
अक्षम हूं मैं असमर्थताओं का पुतला,
काल-पीड़ित कविता में
बहुत-बहुत दुबला ।
रहने दो बंधु !
मुझे रहने दो अवहेलित,
जीने दो जीवन को तापित औ' परितापित,
निष्कलंक रह लूंगा
चाहे रहूं अवमानित ।
('पंख और पतवार' नामक कविता-संग्रह से )
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,594
edits