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Kavita Kosh से
क्या सबब है मेरी उदासी का,
सोचते काश, तुम ये फ़ुर्सत से।
पत्थरों की हसीन बस्ती में,
अब मुहब्बत की राह छोड़, ऐ दिल,
आदमी तुल रहा है दौलत से।
सह सकूँ मैं सभी तुम्हारे ग़म,