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रचनाकारः [[{{KKRachna|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह]][[Category:|संग्रह=कुछ कविताएँ]][[Category:/ शमशेर बहादुर सिंह]]}}{{KKCatKavita}}<poem>प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~भोर का नभ
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे<br><br>राख से लीपा हुआ चौका(अभी गीला पड़ा है)
भोर का नभ<br><br>बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर सेकि धुल गयी हो
राख से लीपा हुआ चौका<br>स्लेट पर या लाल खड़िया चाक(अभी गीला पड़ा है)<br><br> मल दी हो किसी ने
बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर से<br>नील जल में या किसी कीकि धुल गयी गौर झिलमिल देहजैसे हिल रही हो<br><br>।
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक<br>और...::मल दी जादू टूटता है इस उषा का अबसूर्योदय हो किसी ने<br><br>रहा है।
नील जल में या किसी की<br>
::गौर झिलमिल देह<br>
जैसे हिल रही हो।<br><br>
और...<br>::जादू टूटता है इस उषा का अब<br>सूर्योदय हो रहा है।<br> (कविता -संग्रह, "टूटी हुई बिखरी हुई" से)</poem>
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