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Kavita Kosh से
<Poem>
दुख
:मेरे आँगन की बेरी ।
हँसी गुमी
पात हिले
यहाँ वहाँ
विरह गंध
आँसू-सी
ख़ूब झरी
साँसों के
काँटों के
आर-पार
</poem>