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<Poem>
दुख
:मेरे आँगन की बेरी ।
हँसी गुमी
पात हिले
यहाँ वहाँ
::आँचल में बंद गई छँहेरी ।
विरह गंध
आँसू-सी
ख़ूब झरी
::मैं भी तो प्रियतम की चेरी ।
साँसों के
काँटों के
आर-पार
::रामा! अब काहे की देरी ।
</poem>
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