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Kavita Kosh से
|रचनाकार=गुलज़ार
|संग्रह = पुखराज / गुलज़ार
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रात कल गहरी नींद में थी जब
सुबह तक जल गया था वो कैनवास
राख भिखरी बिखरी हुई थी कमरे में मेरे...!
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