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रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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अब कैसा हड़ताल का ख़तरा
सबको रोटी दाल का खतरा

दाना चुगने वाले पंछी
कैसे उतरें, जाल का खतरा

जीवन की शतरंज के ऊपर
आड़ी- तिरछी चाल का ख़तरा

अश्क अगर बहना भी चाहें
एक-एक पल रूमाल का ख़तरा

भेड़ से हमको खौफ नहीं है
बस इक मुर्दा खाल का ख़तरा

आज अदब या फनकारी पर
चढ़ आया नक्काल का ख़तरा

सर्वत लापरवाही कैसी
सोच गुजिश्ता साल का ख़तरा </poem>