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Kavita Kosh से
पूरै मन सूं पूरसी आज धरा री आस।। 53।।
आकाश धर्रा रहा है, अब सावन का महीना आ गया है। आज पूरे मद से यह धरा की आषा आशा पूर्ण करेगा।
छावण लागी बादळी, हिवडै उमड्यो नेह।
हींडै ऊभी तीजण्यां कर-कर पूरो जोर।। 55।।
तकड़ै हींडां तीजण्यां जावै लाग अकास।