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पूरै मन सूं पूरसी आज धरा री आस।। 53।।
आकाश धर्रा रहा है, अब सावन का महीना आ गया है। आज पूरे मद से यह धरा की आषा आशा पूर्ण करेगा।
छावण लागी बादळी, हिवडै उमड्यो नेह।
हींडै ऊभी तीजण्यां कर-कर पूरो जोर।। 55।।
मजबूत झूलों ऊंचे डालों पर झूलती हुई तीजनियां आकाश को छू लेती मजबूत डोरियों से झुले डाले गये है और सामने बादलियां हृदय में हुलास भरऔरर तीजनीयां खड़ी-भर उनसे मिलती खड़ी पुरे जोर से झुल रही है।
तकड़ै हींडां तीजण्यां जावै लाग अकास।
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