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उठती दीसी बादळी मऊ रह्मा जे आज।आज ।घर कानी जी चालियो सुण-सुण मधरी गाज।। 31।।गाज ।।31।।
बादली को उठती उठते हुई देखकर और उसका मधुर-मधुर गर्जन सुन कर आज परदेश गये गए हुओं का भी मन घर जाने के लिये लिए लालायित हो उठा है।है ।
घूम घटा चट ऊमटी छायी मुरधर आय।आय ।मऊ गयां नै मोड़िया मधरी गाज सुणाय।। 32।।सुणाय ।।32।।
शीघ्र ही उमड़-घुमड़ कर घटा मरूधरा पर छा गई। गई । मधुर गर्जन सुना कर इसने परदेस गये गए हुओं को भी लौटा लिया है।है ।
ऊगत नाख्या माछला छिपतां नाखी मोग।मोग ।सूरज तकड़ो तापियो कर विरखा संजोग।। 33।।संजोग ।।33।।
उगते और छिपते दोनों समय शुभ शकुन रूप में ‘‘माछला‘‘ "माछला" और ‘‘मोग‘‘ "मोग" नामक लालिमा की लंबी धारायें धाराएँ फैला कर वर्षा का संयोग कराने वाला सुर्य सूर्य आज खुब तपा।ख़ूब तपा ।
ऊंडी अंबर में उठी गह डंबर घहराय।घहराय ।वरस सुहाणी वण घटा सारी धर सरसाय।। 34।।सरसाय ।।34।।
आकाश में खुब ख़ूब गहरी घहरा कर उमड़ती हुई बादली, सुहावनी घटा बन कर बरसो, जिससे सारी धरा सरसित हो उठे।
घटाटोप आभो घिरयो रह्मो खूण धरराय।धरराय ।आखी जीया-जुण रो हियो हिलोळा खाय।। 35।।खाय ।।35।।
घने मेघों से आछन्न आकाश खूब ख़ूब घर्रा रहा है। अखिल जीव योनियों का हृदय आलोड़ित हो रहा है।है ।
काळी-काळी कांठळी उजळी कोरण जोय।जोय ।उतर दिस उठियो जाण हिंवाळो होय।। 36।।होय ।।36।।
काली काली कंठुली -सी बादली की उजली कोरे देखो, मानो उतर दिशा में हिमालय ही उठ आया हो।हो ।
अम्बर में उमड घटा आभै अटकी आंख।आंख ।चढ़-चढ़ छातां छोळ में मोर संवारै पांख।। 37।।पांख ।।37।।
उमड़ती घटा को देखकर आकाष आकाश में आखें अटक गई है। छतों पर चढ़ कर आनंदातिरेक में मोर पाखें फैला रहे है।हैं ।
जोड़ कांगसी जो सूं कुंडाळो करियां।करियां ।बाळक मांगे बादळी, भर दे तालरियां।। 38।।तालरियां ।।38।।
मीठा बोलै मोरिया डूंगा टोकां गाज।गाज ।पळ पळ साजन संभरै इसड़ी वेला आज।। 39।।आज ।।39।।
मोर मीठी बोली बोल रहे है और गहरे बादलों में मधुर गर्जन हो रहा है। ऐसे समय में पल -पल पर साजन की स्मृति आ रही है।है ।
मीठा बोलै मोरिया डूंगा टोकां गाज।गाज ।साजन आज सांकडै जीव भुळै किण साज।। 40।।साज ।।40।।
मोर मीठी बोली बोल रहे है और गहरे बादलों में मधुर गर्जन हो रहा है। है । आज साजन पास में नही है, हृदयको हृदय को कैसे बहलाया जाये ?</poem>