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Kavita Kosh से
गुलों को चूम के जब से चली हवाएँ हैं
गयीं, जहाँ भी, वहाँ खुशनुमा फि़ज़ाएँ हैं
भुला के ग़म को चलो आज मिल के रक्स करें
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएँ हैं
सबूत लाख करे पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
चला हजूम सदा साथ झूठ के " नीरज "
लिखी नसीब में सच के सदा ख़लाएँ ख़लाएँ हैं
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