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{{KKRachna}}|रचनाकार=राम प्रकाश रामप्रकाश 'बेखुद'लखनवी |संग्रह=
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मैं तो बस्ती ढूढ़ ढूँढ़ रहा था मुझको मिले शमशान बहुतमेरे मालिक तेरे जहां जहाँ में खेत है हैं कम खलियान खलिहान बहुत
हुस्न की दौलत वाले मुझको तेरी इक मुस्कान बहुत
कहने वाले सच कहते हैं मान का है इक पान बहुत
ज़िक्रे सियासत कल्लो गारत क़त्लो-ग़ारत मंदिर - मस्जिद धोखा-धडी धड़ी
ऐसी ख़बरें सुनते सुनते पक गए अपने कान बहुत
हर अरमान में इक दुनिया है और दिल में अरमान बहुत
अल्लाह रे दस्तूरे मोहब्बत कैसी कसी शर्ते कैसी शर्तें हैंइश्क की सौ कुर्बानियां कुर्बानियाँ कम हैं हुस्न का इक एहसान बहुत
कितना मज़ा आता था 'बेखुद' डूबने और उभरने में
आके किनारे राज़ खुला ये अच्छा था तूफ़ान बहुत </poem>