एक
अब इस रात में
जब मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
सफ़ेद बादल गुमसुम आकाश में घुमड़ते हैं
बजरी पर पानी का गुस्सा उतरता है
और बंजर ज़मीन के ऊपर
थरथराती है हवा ।
दो
झरने झरते हैं
पहाड़ की ढाल पर
हर साल
ऊपर आकाश में
मौज़ूद हैं बादल सदैव ।
तीन
बाद में, जब साल होंगे वीरान
बादल और कोहरा तब भी रहेंगे मौज़ूद
पानी गुस्सा उतारता रहेगा बजरी पर
और बंजर ज़मीन के ऊपर थरथराती रहेगी हवा ।
(1920-25)
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : मोहन थपलियाल