भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर तरफ़ तेज आंधियां रखना / ध्रुव गुप्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर तरफ़ तेज आंधियां रखना
बीच में मेरा आशियां रखना

धूप छत पर हो, हवा कमरे में
लॉन में शोख़ तितलियां रखना

चांद बरसेगा नेमतों की तरह
घर में दो-चार खिड़कियां रखना

बहुत सी आग इरादों में रहे
दिल में थोड़ी तसल्लियां रखना

तुम रहोगे, जहां ज़मीं है तेरी
मैं जहां हूं, मुझे वहां रखना

बांह फैले तो तुमको छू आए
फ़ासला इतना दरमियां रखना