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अव्वल तो मैं सनद हूँ / विष्णुचन्द्र शर्मा
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अव्वल तो मैं सनद हूँ
रचनाकार | विष्णुचन्द्र शर्मा |
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प्रकाशक | सर्वनाम, दिल्ली-110094 |
वर्ष | 2002 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
विधा | |
पृष्ठ | 44 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- दूर एक नज़र करके चला जाऊंगा / विष्णुचन्द्र शर्मा
- बिहिश्ती हमीं से मीर / विष्णुचन्द्र शर्मा
- था मुस्तआर / विष्णुचन्द्र शर्मा
- मालूम अब हुआ कि / विष्णुचन्द्र शर्मा
- कहने लगा कि देख के चल / विष्णुचन्द्र शर्मा
- तो इतना फूट कर मत रो / विष्णुचन्द्र शर्मा
- मालूम अब हुआ कि बहुत मैं भी दूर था / विष्णुचन्द्र शर्मा
- चिराग़े सेहरी / विष्णुचन्द्र शर्मा
- फिर बरसों तईं प्यारे / विष्णुचन्द्र शर्मा
- अव्वल तो मैं / विष्णुचन्द्र शर्मा
- मीर साहब रुला गए सबको / विष्णुचन्द्र शर्मा
- एक तुझको हज़ार में देखा / विष्णुचन्द्र शर्मा
- हर सुबह उठ के तुझ से मांगता हूँ मैं तुझी को / विष्णुचन्द्र शर्मा
- कहने लगा कि देख के चल राह बेख़बर / विष्णुचन्द्र शर्मा
- शायद कि 'मीर' का दिमाग़ी ख़लल गया / विष्णुचन्द्र शर्मा
- कल दर्दे दिल कहा तो मेरा मुँह उबल गया / विष्णुचन्द्र शर्मा
- इस आशुफ़तासरी का / विष्णुचन्द्र शर्मा
- सूखा पड़ा है अब तो / विष्णुचन्द्र शर्मा
- देर से इंतज़ार है अपना / विष्णुचन्द्र शर्मा
- सीने में जैसे कोई / विष्णुचन्द्र शर्मा
- क्या जाते दिल को खींचे है / विष्णुचन्द्र शर्मा
- ठहराव सा हो जाता / विष्णुचन्द्र शर्मा
- हमको सौ कोस से आता है नज़र अपना घर / विष्णुचन्द्र शर्मा
- आँखों में जी मेरा है इधर यार देखता / विष्णुचन्द्र शर्मा
- ले साँस भी आहिस्ता कि नाज़ुक है बहुत / विष्णुचन्द्र शर्मा
- मीर को तुम अबस उदास किया / विष्णुचन्द्र शर्मा
- ख़ुश रहो 'मीर' मेरी जान जहाँ रहते हो / विष्णुचन्द्र शर्मा
- हर एक चीज़ से दिल उठा कर चले / विष्णुचन्द्र शर्मा
- दर्दमंदी में गई सारी जवानी उसकी / विष्णुचन्द्र शर्मा
- रहा कुछ और ही आलम हमारा / विष्णुचन्द्र शर्मा
- हैरती है यह आईना किसका / विष्णुचन्द्र शर्मा
- राह तकते तो फट गई आँखें / विष्णुचन्द्र शर्मा
- सूरज के पीछे जैसे रात / विष्णुचन्द्र शर्मा