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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 31 से 40 तक/पृष्ठ 7
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	कैकेयी जौलों जियति रही |
	तौलों बात मातुसों मुँह भरि भरत न भूलि कही ||
	मानी राम अधिक जननीतें, जननिहु गँस न गही |
	सीय-लषन रिपुदवन राम-रुख लखि सबकी निबही ||
	लोक-बेद-मरजाद दोष-गुन-गति चित चख न चही |
	तुलसी भरत समुझि सुनि राखी राम-सनेह सही ||
	
	