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पद 151 से 160 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3

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पद संख्या 155 तथा 156

(155)
 
विस्वास राम -नाम को।
मानत नहिं परतीति अनत ऐसोइ सुभाव मन बामको।1।

पढ़िबो पर्यो न छठी छ मत रिगु जजुर अथर्वन सामको।।
ब्रत तीरथ तप सुनि सहमत पचि मरै करै तन छााम को? ।2।

करम-जाल कलिकाल कठिन आधीन सुसाधित दामको।
ग्यान बिराग जोग जप तप भय लोभ मोह कोह कामको।3।

सब दिन सब लायक भव गायक रघुनायक गुन-ग्रामको।
बैठे नाम-कामतरू-तर डर कौन घोर घन घामको।4।

को जानै को जैहै जमपुर को सुरपुर पर धामको।
तुलसिहिं बहुत भलो लागत जग जीवन रामगुलामको।5।

(156)
 
कलि नाम कामतरू रामको।
दलनिहार दारिद, दुकाल दुख, देाष घोर घन धामको।1।

नाम लेत दाहिनो होत मन, बाम बिधाता बामको।
कहत मुनीस महेस महातम, उलटे सूधे नामको।2।

भलो लोक-परलोक तासु जाके बल ललित-ललाम को।
तुलसी जग जानियत नामते सोच न कूच मुकामको।3।