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पद 1 से 10 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 2

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पद 3 से 4 तक

 
 (3)
 
को जांचिये संभु तजि आन।
दीनदयालु भगत-आरति-हर, सब प्रकार समरथ भगवान।।1।।

कालकूट जुर जरत सुरासुर, निज पन लागि किये बिषपान।
दारून दनुज, जगत-दुखदायक, मारेउ त्रिपुर एक ही बान।।2।।

जो गति अगम महामुनि दर्लभ, कहत संत, श्रुति, सकल पुरान।
सो गति मरन-काल अपने पुर, देत सदासिव सबहिं समान।3।

सेवत सुलभ, उदार कलपतरू, पारबती-पति परम सुजान।
देहु काम-रिपु राम-चरन-रति, तुलसिदास कहँ कृपानिधान।4।

(4)
 
दानी कहुँ संकर-सम नाहीं।
दीन-दयालु दिबोई भावै, जाचक सदा सोहाहीं।1।

मारिकै मार थप्यौ जगमें, जाकी प्रथम रेख भट माहीं।
ता ठाकुरकौ रिझि निवाजिबौ, कह्यौ क्यों परत मो पाहीं।2।

जोग कोटि करि जो गति हरिसों, मुनि माँगत सकुचाहीं।
बेद-बिदित तेहि पद पुरारि-पुर, कीट पतंग समाहीं।3।

ईस उदार उमापति परिहरि, अनत जे जाचन जाहीं।
तुलसिदास ते मूढ़ माँगने, कबहुँ न पेट अघाहीं।4।