पद 231 से 240 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 3
पद संख्या 235 तथा 236
(235)
ऐसेहि जनम-समूह सिराने।
प्राणनाथ रघुनाथ-से प्रभु तजि सेवत चरन बिराने।।
जे जड़ जीव कुटिल, कायर, खल, केवल कलिमल-साने।
सूखत बदन प्रसंसत तिन्ह कहँ, हरितें अधिक करि माने।।
सुख हित कोटि उपाय निरंतर करत न पायँ पिराने।
सदा मलीन पंथके जल ज्यों, कबहूँ न हृदय थिराने।।
यह दीनता दूर करिबेको अमित जतन उर आने।
तुलसी चित-चिंता न मिटै बिनु चिंतामनि पहिचाने।।
(236)
जौ पै जिय जानकी-नाथ न जाने ।
तौ सब करम-धरम श्रमदायक ऐसेइ कहत सयाने। 1।
जे सुर, सिद्ध , मुनीस, जोगबिद बेद-पुरान बखाने।
पूजा लेत , देत पलटे सुख हानि-लाभ अनुमाने।2।
काको नाम धोखेहू सुमिरत पातकपुंज पराने।
बिप्र -बधिक , गज गीध कोटि खल कौनके पेट समाने।3।
मेरू -से देाष दूरि करि जनके, रेनु-से गुन उर आने।
तुलसिदास तेहि सकल आस तजि भजहि न अजहुँ अयाने।4।