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मेल्यौ उर आँनद अपार मैन सोवत हीं / शृंगार-लतिका / द्विज

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मनहरन घनाक्षरी
(वसंत-शोभा का अनुभव करते हुए जाग्रत होने का वर्णन)

मेल्यौ उर आनँद अपार मैन सोवत हीं, पाइ सुधि सौरभ समीरन-मिलन की ।
नेह के झकोरन हलाइ उर दीन्हौं, लखि सुखमा लवंग लतिकान के हिलन की ॥
स्वपन भयौ धौं किधौं साँची करतार! इमि, समुझत रीति लखि अंग-सिथिलन की ।
खिलि गए लोचन हमारे इक बार सुनि, आहट गुलाबन के अखिल खिलन की ॥३॥