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रामप्रेम ही सार है / तुलसीदास/ पृष्ठ 2
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रामप्रेम ही सार है-2
(39)
झूठो है, झूठो है, झूठो सदा जगु, संतक हंत जे अंतु लहा है।
ताको सहै सठ! संकट कोटिक, काढ़त दंत, करंत हहा है।।
जानपनीको गुमान बड़ो, तुलसीके बिचार गँवार महा है।
जानकीजीवनु जान न जान्यो तौ जान कहावत जान्यो कहा है।।
(40)
तिन्ह तें खर, सूकर, स्वान भले, जड़ता बस ते न कहैं कछु वै।
‘तुलसी’ जेहि रामसों नेहु नहीं सो सही पसु पूँछ, बिषान न द्वै।।
जननी कत भार मुई दस मास, भई किन बाँझ, गई किन च्वै।
जरि जाउ सो जीवनु, जानकीनाथ! जियै जगमें तुम्हरो बिनु ह्वै।।