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[[Category:लम्बी रचना]]
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|पीछे=गीतावली अरण्यकाण्ड पद 11 से 15/पृष्ठ 13|आगे=गीतावली अरण्यकाण्ड पद 11 से 15/पृष्ठ 35
|सारणी=गीतावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 21
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(1214)जटायुसे भेण्टमेरे एकौ हाथ न लागी नीके कै जानत राम हियो हौं |गयो बपु बीति बादि कानन ज्यों कलपलता दव दागी प्रनतपाल, सेवक-कृपालु-चित, पितु पटतरहि दियो हौं ||
दसरथसों न प्रेम प्रतिपाल्यौत्रिजगजोनि-गत गीध, हुतो जो सकल जग साखी जनम भरि खाइ कुजन्तु जियो हौं |बरबस हरत निसाचर पतिसों हठि न जानकी राखी महाराज सुकृती-समाज सब-ऊपर आजु कियो हौं ||
मरत न मैं रघुबीर बिलोके तापस बेष बनाए श्रवन बचन, मुख नाम, रुप चख, राम उछङ्ग लियो हौं |चाहत चलन प्रान पाँवर बिनु सिय-सुधि प्रभुहि सुनाए तुलसी मो समान बड़भागी को कहि सकै बियो हौं ||
बार-बार कर मीञ्जि, सीस धुनि गीधराज पछिताई |
तुलसी प्रभु कृपालु तेहि औसर आइ गए दोउ भाई ||
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