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|रचनाकार=सूर्यभानु गुप्त
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<poem>लंबे-लंबे बाल बढ़ाए,
हिप्पी जैसे बादल आए।

काले-काले, भूरे-भूरे,
कवियों से मनमौजी पूरे।
मोर पंख की गंजी पहने,
इंद्रधनुष की पैंट चढ़ाए।

साथ हवाओं के हो लेंगे,
कई-कई दिन पता न देंगे।
और मूड में कई-कई दिन,
बने रहेंगे झड़ी लगाए।

बिजली संग नाचे-झूमेंगे,
आसमान भर में घूमेंगे।
आँधी-पानी वाले झोले
हरदम कंधों से लटकाए।

-साभार: पराग, जुलाई, 1978, 4
</poem>
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