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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यभानु गुप्त
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>लंबे-लंबे बाल बढ़ाए,
हिप्पी जैसे बादल आए।
काले-काले, भूरे-भूरे,
कवियों से मनमौजी पूरे।
मोर पंख की गंजी पहने,
इंद्रधनुष की पैंट चढ़ाए।
साथ हवाओं के हो लेंगे,
कई-कई दिन पता न देंगे।
और मूड में कई-कई दिन,
बने रहेंगे झड़ी लगाए।
बिजली संग नाचे-झूमेंगे,
आसमान भर में घूमेंगे।
आँधी-पानी वाले झोले
हरदम कंधों से लटकाए।
-साभार: पराग, जुलाई, 1978, 4
</poem>
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<poem>लंबे-लंबे बाल बढ़ाए,
हिप्पी जैसे बादल आए।
काले-काले, भूरे-भूरे,
कवियों से मनमौजी पूरे।
मोर पंख की गंजी पहने,
इंद्रधनुष की पैंट चढ़ाए।
साथ हवाओं के हो लेंगे,
कई-कई दिन पता न देंगे।
और मूड में कई-कई दिन,
बने रहेंगे झड़ी लगाए।
बिजली संग नाचे-झूमेंगे,
आसमान भर में घूमेंगे।
आँधी-पानी वाले झोले
हरदम कंधों से लटकाए।
-साभार: पराग, जुलाई, 1978, 4
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