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{{KKRachna
|रचनाकार=मोहन पुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
अपणा परायां री
ओळ्यूं
घोड़ी चढ़नै
बण जावै है
बीन...
रात रा
अन्धारा में
ऊजळी किरणां रो टमको
नीं जाणै कद
चुण जावै
नीन...।
</poem>
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|रचनाकार=मोहन पुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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अपणा परायां री
ओळ्यूं
घोड़ी चढ़नै
बण जावै है
बीन...
रात रा
अन्धारा में
ऊजळी किरणां रो टमको
नीं जाणै कद
चुण जावै
नीन...।
</poem>