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नीन / मोहन पुरी

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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
अपणा परायां री
ओळ्यूं
घोड़ी चढ़नै
बण जावै है
बीन...
रात रा
अन्धारा में
ऊजळी किरणां रो टमको
नीं जाणै कद
चुण जावै
नीन...।

</poem>
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