भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रावण (एक) / पूनम चंद गोदारा

1,099 bytes added, 04:55, 8 दिसम्बर 2019
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम चंद गोदारा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पूनम चंद गोदारा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
पूरौ राखूंडै मांय तो
मिल्यौ ई
कोनी हो रावण !

लोग-बाग
बळतै रावण री ही करै हा
बातां

कोई
लूंठौ विद्वान बतावै हो
कोई अधर्मी
कोई रागस बतावै हा

आंगळ्या पर
गिणीजै हा गुण-औगण
सैंग आपरै मुजब
कीं सरावै-बिसरावै हा

आंख्या साम्ही
भीड़ स्यूं फेरूं जोरामरजी
ऐक रावण
कर लेग्या एक सीता रौ
अपहरण !

अर लोग आंख्या मींच्या
देखता रैया
बळतोड़ो रावण
अर गिणता रैया गुण-औगण !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits