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{{KKRachna
|रचनाकार=पूनम चंद गोदारा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
पूरौ राखूंडै मांय तो
मिल्यौ ई
कोनी हो रावण !
लोग-बाग
बळतै रावण री ही करै हा
बातां
कोई
लूंठौ विद्वान बतावै हो
कोई अधर्मी
कोई रागस बतावै हा
आंगळ्या पर
गिणीजै हा गुण-औगण
सैंग आपरै मुजब
कीं सरावै-बिसरावै हा
आंख्या साम्ही
भीड़ स्यूं फेरूं जोरामरजी
ऐक रावण
कर लेग्या एक सीता रौ
अपहरण !
अर लोग आंख्या मींच्या
देखता रैया
बळतोड़ो रावण
अर गिणता रैया गुण-औगण !
</poem>
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पूरौ राखूंडै मांय तो
मिल्यौ ई
कोनी हो रावण !
लोग-बाग
बळतै रावण री ही करै हा
बातां
कोई
लूंठौ विद्वान बतावै हो
कोई अधर्मी
कोई रागस बतावै हा
आंगळ्या पर
गिणीजै हा गुण-औगण
सैंग आपरै मुजब
कीं सरावै-बिसरावै हा
आंख्या साम्ही
भीड़ स्यूं फेरूं जोरामरजी
ऐक रावण
कर लेग्या एक सीता रौ
अपहरण !
अर लोग आंख्या मींच्या
देखता रैया
बळतोड़ो रावण
अर गिणता रैया गुण-औगण !
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