भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
जगह नहीं इस धरती पर कोई और
शुभाशा के वायुमंडल से भरेतुम्हारे वक्ष-कक्ष से बढ़ कर- जानता नहीं कोई यह मुझ से ज़्यादा- कि जिसकी चौखट पर टिकाते ही अशांत माथा नींद में निर्भार होने लगती है देह एक शिशु हथेली मन की स्लेट से पोंछने लगती है आग के आखर
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,466
edits