भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय सिंह नाहटा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय सिंह नाहटा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मुझे नहीं जगाते सौ-सौ सूर्योदय
चिर नींद से जगाती है मुझे
भीतर खदबदाती आग।
रोज एक सपना देखते रहना ही है
मुझे प्रासंगिक
हर एक दिन औजार की तरह है
जिससे करता रहता हूँ
इस टूटी फूटी दुनिया की मरम्मत।
चाहता हूँ यह हो साफ़ सुथरी
औ' सलवटों से रहित।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,172
edits