भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>
रही है क़श्तिए उम्रे-रवाँ आहिस्ता आहिस्ता
ख़यालो-ख़्वाब होगा ये जहाँ आहिस्ता आहिस्ता
ख़यालो-ख़्वाब होता जा रहा है ये जहाँ आहिस्ता आहिस्ता
मैंने इनको एक कत्अः में तब्दील कर दिया है।
</poem>