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|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
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'''नज़्र-ए-अख़्तर-उल-ईमान'''
 
 
रही है क़श्तिए उम्रे-रवाँ आहिस्ता आहिस्ता
ख़यालो-ख़्वाब होगा ये जहाँ आहिस्ता आहिस्ता
ख़यालो-ख़्वाब होता जा रहा है ये जहाँ आहिस्ता आहिस्ता
मैंने इनको एक कत्‌अः में तब्दील कर दिया है।
</poem>
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