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सोच है यहै कै संग ताके रंगभौन माहिं
::कौन धौ अनोखौ ढंग रचति निराटी है ।
छाँटि देत कूबर कै आंटि देति डाँट कोऊ::काटि देति खाट किधौं पाटि देति माटी है ॥76॥
</poem>
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