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सीता असगुन कौं कटाई नाक एक बेरि / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
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04:53, 3 अप्रैल 2010
सोच है यहै कै संग ताके रंगभौन माहिं
::कौन धौ अनोखौ ढंग रचति निराटी है ।
छाँटि
देत कूबर कै आंटि देति डाँट कोऊ
::काटि
देति खाट किधौं पाटि देति माटी है ॥76॥
</poem>
Himanshu
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