भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
सोच है यहै कै संग ताके रंगभौन माहिं
::कौन धौ अनोखौ ढंग रचति निराटी है ।
छाँटि देत कूबर कै आंटि देति डाँट कोऊ::काटि देति खाट किधौं पाटि देति माटी है ॥76॥
</poem>