भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शरशय्या / तेसर सर्ग / भाग 7 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'
Kavita Kosh से
सखाकृष्णसँ भेल समन्वित
पाँचों पाण्डव आबि।
कएलन्हि पूज्यपितामह-पूजन
भक्त-भावके लाबि।।25।।
शय्यापरसँ करयुग जोड़ल
कहलन्हि “देव! प्रणाम।
आशिष दै’ छी वत्स! युधिष्ठिर!
पूरए सभ मनकाम”।।26।।
गीतागायक श्रोता बनिके
आएल छला महान्।
ततए समाजक प्रतिनिधि भएके
वचन कहल अम्लान।।27।।
“हे गांगेय! अमूल्य सुभग पल।
बितइछ भारत हेतु।
कहल जाय किछु जन कल्याणक।
हेतुक भारत केतु!”।।28।।