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शरशय्या / तेसर सर्ग / भाग 8 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'

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कहलन्हि भीष्म “कहब की देव!
अपनहिसँ हम चारम लेब।।29।।
सूनथु पाण्डव अभिनवभूप।
हमरो सूनल बचन अनूप”।।30।।

ध्यान ततए दए माथ झुकाए।
सुनए लगला बुधबरराय।।31।।
तखन युधिष्ठिरस मतिमान।
कहलन्हि दूनू पक्षक ज्ञान।।32।।

“जनगण गणपति देव समान।
बुझु विघ्नेशक तत्व प्रधान।।33।।
टारि त्वरित परघातक बुद्धि।
नृप! परचारू अन्तर्शुद्धि।।34।।

करू धीमन्! जनता-अनुरोध।
राख हुनकर नीकक बोध।।35।।
एकसर जितने जग नहि जान।
आनक हितसँ हो सम्मान।।36।।