भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शरशय्या / दोसर सर्ग / भाग 1 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'
Kavita Kosh से
इष्टदेवपूजन निरत
रहथि पुरातन लोक।
चन्दन-पूजन-ध्यानसँ
होइछ दिव्यालोक।।1।।
दूनू लोकक साधनक
हेतु कहल सत्कर्म।
उपकृत कए जनता करी
परलोकक हित धर्म।।2।।
शुद्ध चतुरता शास्त्रमे
कहलहि ते मुनिवर्ग।
थापित कए जगमें सुयश
पाबी जँ अपवर्ग।।3।।
शान्तिक अधिपति शान्तनुक
जीवन-यापन शुद्ध।
बढ़ल दिनो दिन भक्तिमय
भावन ज्ञान-प्रबुद्ध।।4।।
कालकगतिके रोकि के
सकथि, रहथु अवतार?
संसरणहि सँ पड़ल अछि
सज्ञा ते संसार।।5।।