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शरशय्या / पहिल सर्ग / भाग 3 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'
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गुरु वाल्मीकि हमर रहथि
कविता-कथा-प्रवीण।
व्यास पुराणक रचयिता
बजबथि भक्तिक वीण।।11।।
हुनक कल्पनामे वसल
आलम्बन गुण गान।
जागृत होएत जाहिसँ
मानव-मानस-मान।।12।।
ज्ञान अखिल विज्ञानसँ
पूर एतए मुनि मानि।
राखल शास्त्र-पुराणमे
समय आगु अनुमानि।।13।।
परमपूज्य शन्तनुक सुत
व्यासक नायक एक।
छला भीष्म मतिमान दृढ़
जनइत कला अनेक।।14।।
स्वगांकेर गभर्स
जनमि वसुक अवतार।
अपन त्यागमय वीरता-
सँ कएलन्हि उद्धार।।15।।