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भुजंगप्रयात
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)
कहूँ कोक हूँ कोक की कारिका कौं । पढ़ावै भली-भाँति सौं सारिका कौं ॥
सुकाली कहूँ गान के भेद रांचैं । लता-लोलिनी लोल ह्वै नाँच नाँचै ॥२०॥