भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सीतल-समीर मंद हरत मरंद-बुंद / शृंगार-लतिका / द्विज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKPageNavigation | {{KKPageNavigation | ||
|पीछे=लटपटी पाग सिर साजत उनींदे अंग / शृंगार-लतिका / द्विज | |पीछे=लटपटी पाग सिर साजत उनींदे अंग / शृंगार-लतिका / द्विज | ||
− | |आगे= | + | |आगे=बायु बहारि-बहारि रहे छिति, बीथीं सुगंधनि जातीं सिँचाई / शृंगार-लतिका / द्विज |
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 1 | |सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 1 | ||
}} | }} |
08:19, 29 जून 2011 के समय का अवतरण
रूप घनाक्षरी
(शांतिमय वन-वर्णन)
सीतल-समीर मंद हरत मरंद-बुंद, परिमल लीन्हैं अलि-कुल छबि छहरत ।
कामबन, नंदन की उपमा न देत बनैं, देखि कैं बिभव जाकौ सुर-तरु हहरत ॥
त्यागि भय-भाव चहूँ घूँमत अनंद भरे, बिपिन-बिहारिन पैं सुख-साज लहरत ।
कोकिल, चकोर, मोर करत चहूँघाँ सोर, केसरी-किसोर बन चारौं ओर बिहरत ॥१०॥