भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"डोलि रहे बिकसे तरु एकै / शृंगार-लतिका / द्विज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }}{{KKAnthologyBasant}} {{KKPageNavigation |पीछे=नागर से हैं खरे तरु …)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:52, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

किरीट सवैया
(पुनः ऋतुपति आगमन-वर्णन)

डोलि रहे बिकसे तरु एकै, सु एकै रहे हैं नवाइ कैं सीसहिं ।
त्यौं द्विजदेव मरंद के ब्याज सौं, एकै अनंद के आँसू बरीसहिं ॥
कौंन कहै उपमा तिनकी जे लहैंईं सबै बिधि संपति दीसहिं ।
तैंसैंईं ह्वै अनुराग-भरे कर-पल्लव जोरि कैं एकै असीसहिं ॥२७॥