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"ऐसैं बिचारत हीं मति मेरी / शृंगार-लतिका / द्विज" के अवतरणों में अंतर

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मत्तगयंद सवैया
(बुद्धिस्थिता भगवती के वचन-व्याज से श्री राधिका की स्तुति)

ऐसैं बिचारत हीं मति मेरी, प्रबोधि कहे अखरा मन-भाए ।
ह्वै है कहा ’द्विजदेव’ जू लाहू, इतौ उर-अंतर सोच-बढ़ाए ॥
राधिका जू के बिहार के काज, सबै बिधि सौं सुखमा उपजाए ।
वे नित ही के सँघाती बसंत, अपूरब बेस बनाइ कैं आए ॥३५॥