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"कबहुँक आपुस मैं रचैं / शृंगार-लतिका / द्विज" के अवतरणों में अंतर
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दोहा
(श्रीराधा-माधव की एकरूपता का वर्णन)
कबहुँक आपुस मैं रचैं, बहु-बिधि लौकिक-प्रीति ।
एक-एक सन कहति हैं, सखि ! लखि यह रस-रीति ॥३८॥