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"ता तिय तैं ह्वै क्रुधित, देति बहु-भाँति उराहन / शृंगार-लतिका / द्विज" के अवतरणों में अंतर

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रोला
(दुःखिता, मानिनी और स्वाधीनपतिका तथा रूपगर्विता आदि का संक्षिप्त वर्णन)

ता तिय तैं ह्वै क्रुधित, देति बहु-भाँति उराहन ।
करत मान हरि-संग, लगैं सखियाँ समुझावन ॥
निज तन जोति बढ़ाइ, कबहुँ मोहन-मन मोहैं ।
गरब करैं बहु भाँति, जबै सौतिन-दुख जोहैं ॥४४॥